रंग बरसे वृन्दावन में हर कुञ्ज गली आंगन में,
घनश्याम खेल रहे होली राधा के संग फागुन में,
कोई बच न बच पायो कृष्ण मुरारी से,
सब रंग बिरंगे कर दी इस ने पिचकारी से,
रंग बरसे वृन्दावन में ..........
उड़ा रहे है कान्हा गुलाल होली में,
हरा गुलाभी पीला है रंग झोली में,
तूने ऐसी खेली होली मेरी कर दी चोली गिल्ली,
सब सखियों का मन मोहि राधा भी हुई रंगीली,
कोई बच न बच पायो कृष्ण मुरारी से,
सब रंग बिरंगे कर दी इस ने पिचकारी से,
रंग बरसे वृन्दावन में ..........
सपने में तुम को कान्हा मैं याद करती हु,
मैं अपनी जान से जयदा तुम्हे प्यार करती हु,
फागुन का महीना प्यारा सब देख रहे है नजारा,
कैसा गुलाल उड़ाया रंग गया है ये जग सारा,
कोई बच न बच पायो कृष्ण मुरारी से,
सब रंग बिरंगे कर दी इस ने पिचकारी से,
रंग बरसे वृन्दावन में ..........
लगी है ब्रिज मंडल में देखो रंग शलाये,
होली में मस्त मगन हो नाचे ब्रिज की बालाये,
नन्द लाल को पकड़ के सखियों ने खूब नचाया,
राधे के संग नाचे वो अंदन बड़ा ही छाया,
कोई बच न बच पायो कृष्ण मुरारी से,
सब रंग बिरंगे कर दी इस ने पिचकारी से,
रंग बरसे वृन्दावन में ..........