मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की

मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की,
मैं खाटू मैं खाटू मैं खाटू आ गया जी,

खाटू आके मन्ने देखा भीड़ पड़ी थी भारी,
दूर दूर से आवे आड़े बालक नर और नारी,
सब की आस पुगावे जब में बड़ा है दानी,
इसी लिए सब बोले इसने बाबा शीश का दानी बाबा लखदात्री,
मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की,

खाटू की गलियां में देखा बाबा अजब नजारा,
बाबा तेरा प्रेमी सारा नाच नाच के गा रहा,
कोई बोले बंगाली आड़े कोई गुजराती बोले,
हरयाणे आले भी आड़े जय बाबा की बोले.,
मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की,

थोड़ा सा जब आगे चालिया श्याम कुंड था आया,
श्याम कुंड के शीतल जल में शीतल हो गई काया,
उसके बाद में बाबा तेरा मंदिर ढूंढ लागया,
ढूंडन के मंदिर तेरा मंदिर के समाने आ गया,
मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की,

मंदिर के जब भीतर पोहंचा नजर मने तू आया,
देख के तेरा ठाठ संवारा जय कौशिक हरश्या.
मने देख कर बाबा तू भी थोड़ा तो मुस्काया,
जिसे मैंने सुनाया सा बाबा उस से भी बढ़ कर पाया,
मैं खाटू आ गया जी मने सुनी बड़ी दरबार की,
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