बोलो थक गये क्या बाबा, तेरे दोनों पांव रे,
बेगा पधारो बाबा, निर्धन के गांव रे,
मैं तो हरदम आता बाबा, तेरा दर्शन पाने,
तेरी दया से अच्छा है सब, हालचाल बतलाने,
कर दो दया की आकर, फिर वही छांव रे,
बेगा पधारो बाबा, निर्धन के गांव रे...
बैठे हैं हम आस लगाए, सुध अपनी बिसराए,
मन में लगन एक ही मोहन, तू भी घर पर आए,
थाणे रिझांवा बाबा, भजनां रे भाव से,
बेगा पधारो बाबा, निर्धन के गांव रे...
बीच भंवर में जब जब डोली, बाबा मेरी नैय्या,
तू ही माझी बनकर आया, ओ रे नाग नथईया,
तेरे ही भरोसे मेरी, जीवन की नाव रे,
बेगा पधारो बाबा, निर्धन के गांव रे...
- रचनाकार
अमित अग्रवाल 'मीत'
मो. - 9340790112