मटकी पे मटकी मैं दर के चली थी,
वृन्दावन की वो ही कुञ्ज गली थी,
फोड़ी मटकी तेरे नन्द लाल ने ,
पहले तो पीछे से मारे कंकारियाँ फिर तेरे कान्हा ने रोकी डगरियाँ ,
बाहे मोड़ी माँ तेरे गोपाल ने,
यहाँ यहां जाऊ मैया पीछे आये मेरे,
संग में आई कई माखन के लुटेरे,
कैसे बताऊ ए माँ तुझे रास्ता ना हो कोई मुझे सूजे,
लाल चुनरियाँ मैं ओड खड़ी थी कान्हा के संग मियां गाये बड़ी थी,
पीछे छोड़ी तेरे गोपाल ने,
गाये छोड़ी तेरे नन्द लाल ने,
कहा कहा मैया छाज माखन छुपाऊ,
तेरे लला की उत्पात कैसे मैं बताऊ,
आता है मैया आधी रात में आये न कभी भी मेरे हाथ में,
ताला और कुण्डी लगा के गई थी,
छीके पे मटकी टंगा के गई थी,
कुण्डी तोड़ी तेरे इस लाल ने,
मटकी फोड़ी यशोदा तेरे लाल ने,
झूठी है ये गुजरी तेरे भोले नन्द लाला ,
मुझको है नचाये रस्ते में ब्रिज बाला,
करता हु जो मैं इंकार माँ करती है मुझसे तकरार माँ,
हस के यशोदा ने बाहे फैलाई,
प्यारे कन्हियान को कंठ लगाई
विजय पाई यशोदा तेरे लाल ने,