मटकी आप चटक गयी होयगी,
लालाये देख मटक गयी होयगी,
मेरे लाला को दोष लगावे बंसीय पकड़ लटक गयी होयगी ॥
रोज सबेरे मेरो कन्हैया, गाय चरावै जावे है
तू अलबेली नार नवेली, लालाये जाये रिझावै है
के फिर पाँव से पाँव अटक गयी होयगी,
यमुना की रेत रपट गयी होयगी,
मेरे लाला को दोष लगावे, बंसीय पकड़ लटक गयी होयगी...
धन माया की कमी नही है, तेरी अकल का टोटा है,
तुम तो है रही ज्वान धींगरी, मेरो कन्हैया छोटा है ॥
के फिर माखन आप गटक गयी होयगी,
गौरस आप सटक गयी होयगी, मेरे लाला को दोष लगावे,
बंसीय पकड़ लटक गयी होयगी
बंसी सुनने मेरे मोहन की तुम मधुवन में जाती हो,
दे दे कुल्चा लाल गाल कर हस्ती और हँसाती हो ॥
के फिर बन्सी की धुन पै मटक गयी होयगी,
लालाये पकड़ मसक गयी होयगी ,
मेरे लाला कूँ दोष लगावै बंसीय पकड़ लटक गयी होयगी...
भजन - मटकी आप चटक गयी होयगी
स्वर - पं पूज्य श्री अशोक कृष्ण ठाकुर जी