रुस्या नी माहिया मेरा होया की कसूर वे

रुस्या नी माहिया मेरा होया की कसूर वे,
न छड़ के न जाना तेरा दर हजूर वे,
रुस्या नी माहिया मेरा होया की कसूर वे

यादा दे समुन्दर च डोब्के मैं रोइ आ,
रेत दियां कंधा वांगु वीरान मैं होइ आ,
गम ने विछोड़े वाले बन गए नासूर वे,
न छड़ के न जाना तेरा दर हजूर वे,

माडेया नसीबा मेरा इंज रूल जावे गा,
मैनु की पता सी हाय तू भी बुल जावेगा
रुसणा रूसाना नहियो चंगा दस्तूर पे,
न छड़ के न जाना तेरा दर हजूर वे,

सोख नाल सोहन्दी मैं भी प्रीत ना लौंडी मैं,
निक्की जाहि निमाणी जींद सोखी लंग जांदी वे,
तेरियां जुड़ाइयाँ नहियो साहनु मंजूर वे
न छड़ के जाना तेरा दर हजूर वे,

हंजू बहाने बड़े औखे अखियां च इंज न मैं ढोल दी,
भूल गई रहावा मैं ता अपने ही घर दी,
चरना दी दासी होइ बड़ी मजबूर वे,
न छड़ के जाना तेरा दर हजूर वे,
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