बाँवरे क्यों गबराता है

बाँवरे क्यों गबराता है
श्याम शरण में आजा ये सारे कष्ट मिटाता है
बाँवरे क्यों गबराता है

अपने जब होते पराये ये अपना बन के आये,
थाम ले ये हाथ पल में साथी हारे का कहाए ,
हो इनके होते धीर क्यों खोता क्यों नीर बहाता है
बाँवरे क्यों गबराता है...

है सुख दुःख खेल इसी के जैसे चाहे ये खिलाये,
देख के दुःख में भगत को चैन इसको भी न आये ,
रखता लाज सदा भगतो की दोडा आता है ,
बाँवरे क्यों गबराता है

तू कर दे तन मन अर्पण करदे चरणों में समपर्ण,
श्याम संग प्रीत लगा ले सफल जीवन ये बना ले
देख भाव भगतो के पल में रीज ये जाता है
बाँवरे क्यों गबराता है
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