दोहा दोलत से धनवान गणा और मन से नहीधनवान,
मनको धणी यो सावरो मे किस बिध करु बखान,
सेठाँ मे सावरो सेठ रे बाकी सब डुप्लीकेट,
सेठ बणयो ऐक नरशी मोटो भक्तों नेवो समझों छोटो
एक समय जद पडियो टोटौ आयो सावल
सैठ सैठाँ मे सावरो
बीरों बण नानी घर आयो छपन करोडँ को भात भरायो
र्दौपदी को चीर बढायो जीकी दुनिया माही फेट सैठाँ मै
सेठाँ मे सावरो सेठ
सीसुपाल सा नामि हारया एक अरज पर गजने तारया
हीरणाकुश सा पापी मारिया मामा कँश समेत
सेठाँ मे सावरो सेठ
साराजग को खातो चाले यो दातारी सबने पाले
करमा सारु सबने देवें कोने लाग लपेट
दो नमबर का सेठ गणेरा नरकाँ जाकाँँ होसी डैरा
मालुणी औ करे सवेरा जग अनधियार समेट समेट
सेठाँ मे सावरो सेठ बाकि सब डुप्लीकेट के
भजन लेखक कृष्ण गोपाल उपाध्याय
mo 9414982066
गांव कासोरिया भीलवाड़ा राजस्थान