श्री गणपति गुरु सारदा राम महेश मनाय
श्रीपति राधाकृष्ण के चरण कमल सर नाय
चालीसा वर्णन करू,पितरेश्वर भगवान
सुख सम्पत्ति मंगल करै,हरे कुमति अज्ञान
जय जय श्री पितरेश्वर देवा,सुर नर मुनीजन करते सेवा
आदि हिरण्यगरभ पितरेश्वर,पितर विराजे शशि मंडल पर
नित्य पितर इकतीस कोटिधर,नैमित्तिक कुल के पितरेश्वर
सरवारचित अमूर्त तेजस्वी, ध्यानी दिब्य चक्षु ओजस्वी
इन्द्र दक्ष मारीच प्रचेता, यम मन्वादि सप्तरिषि नेता
ग्रह नक्षत्र अग्नि नभ रुपा,स्वर्गधाम प्रद वायु स्वरूपा
कश्यप सोमाधर प्रजापति, सप्तलोक सागर अबाध गती
योग चक्षु सवायंभुव ब्रह्मा, योगमुरति योगेश अर्यमा
सवधाकब्यभोजी नियतात्मा,देव विष्णु शिव मय परमात्मा
चन्द्र अनल रवि जगत ब्रह्ममय,चौदह भुवनो मे है जय जय
चिदानंदमय दिब्य धाम हो,चरणों में शत शत प्रणाम हो
पूर्वदिशा मैं अग्निष्वॉता,बर्हिस्दा दक्षिण में त्राता
पश्चिम दिशा आज्यपापाले,ऊतर में सोमप रखवाले
चार कोण में नीचे ऊपर,रक्षक हविष्यन्त पितरेश्वर
स्वेत सोमपा विप्र मनावे,अरूणहविरभुज क्षत्रिय घ्यावे
पुजे वैश्य आज्यपा पीले, सेवे शुद्र सुकाली निले
एक मास मानव का जितना, रात्रि दिवश पितरो का उतना
कृष्ण अष्टमी को उगता दिन, भोजन काल अमावश आश्विन
रवि शशी रहे अमावश को सम,आश्विन धरती चन्द्र निकटतम
रवि किरणों से भोजन पावे,कुतुप सुवाकय दोहिता भावे
पिता पितामह मातामह सब,ये बसु रूद्रादित्य रूप मय
सर्व तृप्ति कर श्राद्ध पारवण,विश्वे देवो सहित पितरगण
वैश्व देव बली पंच करावे,कौशिक पुत्रो सम सुख पावे
पितर यज्ञ पितरो को भावे,संद्धयोपाशक भोजन पावे
विप्र एक या तिन जिमावे, गो रश से ही पाक बनावे
दक्षिण मुख ना भोजन पावै,धारे मौन ना स्वाद बतावे
निचे स्वान की दृस्टि निहारे,क्रोध कलह तज धीरज धारे
नही श्राद्ध संयम जो करते,वे संकट दुःखो मे पडते
माता पिता आज्ञा शिर धारे, मृत्यु भोज बहुविधि विस्तारे
करे गया मे श्राद्ध मुदित मन,तीन किये से सफल पुत्रपन
तर्पण स्नान वस्त्र जल पीते, कुश तिल जल पी सुख से जीते
दक्षिण मुख अपसब्य समर्पण, नान्दी मुख ऊपासना तर्पण
भजन सुकिर्तन रात्रि जागरण, खीर चुरमा मधुमय अर्पण
पितरउन कूशासन राजे,जलधर मे प्रभु सदा विराजे
गंगा जल से चरण पखारे, ले चरणोदक शिर पर धारे
कुंकुम सै स्वास्तिक दो करना,पितरतीर्थ सेश्रीफल धरना
चावल तिलक तर्जनी चरचे,धुप दीप सित फुलो अरचे
तुलसी दल फल पान सुपारी, भुषण बसन शीत जल झारी
शुध्द जनेऊ रजत दक्षिणा,करे आरती दे प्रदक्षिणा
सदा प्रणाम करे चरणो पर,शुभाशीष देते पितरेश्वर
पितरेश्वर चालीसा गावै,महिमा वेद पुराण बतावे
रोग दोष अघ शोक नसावे, सुत धनधान्यं आयुसुख पावे
प्रतिदिन तथा श्राध्द में गावे,परम प्रसन्न पितर हो जावे
संकट भय हरते तनमन के,सफल मनोरथ करते जन के
श्रीहरि नाम चरण रती पावै,धनाधीश निर्मल यश गावे
श्रध्दा से पूजो पितर, कहते वेद पुराण
तज कुतर्क संशय भजो,सदा करे कल्याण
तर्पण