तर्ज:- क्यू घबराऊ मैं मेरा
अर्ज लगाऊं मैं सुनते नही क्यू मेरी श्याम,
तुमको सुनाकर बाबा मिलता आराम,
अर्ज लगाऊं मैं सुनते नही क्यू मेरी श्याम......
दुखो ने हर और से घेरा है,
चारो तरफ बस दिखता अंधेरा है,
अब तो आकर राह दिखा जाओ,
मेरी बिगड़ी बात बना जाओ,
दर पे सुना है तेरे,
दर पे सुना है तेरे,
बनते हैं काम..
अर्ज लगाऊं मैं सुनते नही क्यू मेरी श्याम.....
तुम्ही अगर यू मुख को मोड़ोगे,
ऐसे अकेला मुझ को छोड़ोगे,
टूट गया हु तुझ बिन मैं तो श्याम,
कैसे बनेगा बिगड़ा हुआ मेरा काम,
हार गया हु बाबा,
हार गया हु बाबा हे लखदातार,
अर्ज लगाऊं मैं सुनते नही क्यू मेरी श्याम......
‘अनुज’ ने बाबा अर्जी लगाई है,
सुंदर पे क्यों विपदा आई है,
विपदा इसकी तुम्ही टालोगे,
हर संकट से तुम्ही निकालोगे,
इतना उपकार करो तुम,
इतना उपकार करो तुम मेरे घनश्याम,
अर्ज लगाऊं मैं सुनते नही क्यू मेरे श्याम.....