श्याम के चरणो मे हरदम लगी मेरी हाजरी रहती
मेरी आशा उममीदो की सदा बगीया हरी रहती
भटकने दर बदर मुझ को नही मेरा साँवरा देता
मै लख दातार का नोकर मे लख दातार का चाकर ।
मेरी पुजा खरी सबसे खरा घनशयाम हे मेरा।
मेरी चाहत खरी सबस मेरी नियत खरी रहती।
पुकारू जब कंहेया को खिवया बनके आजाये।
भले तुफान हो भारी मेरी नयया तरी रहती।
रहे एहसास ये मुझ को शयाम मेरे आसपास ही हे।
गुंजती कानो मे लकखा इनकी बांसुरी रहती।