तुम अगर मुझको न तारो तो कोई बात नहीं।
दीनवत्सल जो कहाओगे तो मुश्किल होगी ।।
मैं कहाँ कह रहा कि नीच-पापी हूँ नहीं,
नाथ कैसे कहूँ कि मैं आत्मघाती हूँ नहीं ।
बेसहारा बहुत हूँ किसके दर जाऊँ प्रभू ,
मैं पतित हूँ नहीं तो तुम पतितपावन भी नहीं ।।
नाथ मुझको न सुधारो तो कोई बात नहीं ।
पतित पावन जो कहाओगे तो मुश्किल होगी ।।
तुम कहीं हो भक्त सब याद भी करते होंगे,
मैं जो कहता हूँ तो क्या नाथ भी सुनते होंगे ?
अपनी माया में मुझे बाँधके हँसते होगे,
तुम तो हँसते हो मेरे अश्रु निकलते होंगे ॥
तुम जो मुझको न निहारो तो कोई बात नहीं ।
सिंधु करुणा के कहाओगे तो मुश्किल होगी ।।
व्याध को तार दिया गीध-गणिका भी तरी,
धूल चरणों की मिली तो अहिल्या भी तरी ।
तुम अजामिल ही समझलो ग्राह-गज की भी तरह,
अघी-पापी जो तरे तो कान्त पापी है हरी ॥
तुम दया दृष्टि न डारो तो कोई बात नहीं ।
भक्तवत्सल जो कहाओगे तो मुश्किल होगी ॥