नव रात के दुर्गा वो,शीतला भवानी जुड़वास के,
पुन्नी के चंदा पुनवास के, नव रात के दुर्गा वो..
नव दुर्गा नव खंड में दरसे नवे रूप निरा करि,
शीतला शाक्ति सबका हरसे सबके पालन हारी,
तोला सुमर के दाई वो..दियना जलावव चौमास के,
नव रात के दूर्गा वो....
बघवा ऊपर म दूर्गा बइठे गदहा ऊपर न शीतला,
मंगत हन हम सब संसारी दे बर दाईन भिखला,
मया बाटे दाई वो..अपन भगत ला तैहा हास के,
नब रात के दूर्गा वो....
चारो धाम ल तै सिरजाथस शीत जुड़त बर आगी,
तेकरे सेती जोगी मुनी मन नत नत पईया लागी,
ये नमन है दाई वो, जाहिर के तोला उप्पवास के,
नव रात के दुर्गा वो,शीतला भवानी जुड़वास के,
पुन्नी के चंदा पुनवास के,नव रात के दूर्गा वो
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गायक : दुकालू यादव जी(जस सम्राट)
रचनाकार : श्री जाहिर उस्ताद जी
रायपुर छत्तीसगढ़