जिस ने हरी गुण गाए,
हरी दौड़े चले आए ।
भक्त प्रहलाद ने था पुकारा,
हिरण्यकशिपु को आकर के मारा ।
नरसिंह रूप धर आए,
हरी दौड़े चले आए ॥
दौपदी कौरवों से घिरी थी,
मुरली वाले से विनती करी थी ।
हरी आकर के चीर भडाए,
हरी दौड़े चले आए ॥
ऐसा भक्तों ने डाला थे फंदा,
प्रभु आप बने नाई नंदा ।
प्रेम से चरण दबाए,
हरी दौड़े चले आए ॥
दर्योधन के मेवा भी त्यागे,
भूख लागी तो उठ करके भागे ।
साग विधुर घर खाए,
हरी दौड़े चले आए ॥