आओ आओ सब मिल इक हो जाओं,
भेद भाव और उच नीच को आओ जड़ से मिटाये,
इक ईश्वर सब को बनाता सब में वो ही समाये,
कितना सरल ये भेद है भइयाँ मिल के सब को बताओ,
जात पात के रूडी वाद का बीज है मानव भोया,
सोचो इस से फ्ला हुआ क्या क्या पाया बस खोया,
प्रेम के दो बस मीठे बोलो से आओ अलख जगाई,
मानवता है धर्म बड़ा ये सबको संजाइ,
इतना सरल है ये भेद भइयाँ मिल कर सब को बताये,
आओ आओ सब मिल इक हो जाओं,
मंदिर हम बनाते तोरण काज सजाते,
पत्थर को तराश के प्रभु की मूरत हम बनाते,
दिया बाटी तेल को मंदिर हम पौहचांते,
पूजा करने की वेला आई हम को नियम बताते,
दीं दुखी और गिरे पड़े को औ चलना सिखाये,
मानव का मानव का मानव से रिश्ता और भी गहरा बनाये,
इतना सरल है ये भेद भइयाँ मिल कर सब को बताये,
आओ आओ सब मिल इक हो जाओं,