तेरे दरबार पे दामन यह फैला रखा है

दोहा: मांग मांग इंसान की, तमन्ना पूरी होए |
साईं जी के द्वार से खाली गया न कोय ||

तेरे दरबार पे दामन यह फैला रखा है |
इक तेरे आस पे दुनिया को भुला रखा है ||

मेरी बिगड़ी हुई तकदीर सवारी तूने |
मेरी डूबी हुई कश्ती भी उभारी तूने ||
तेरी उठी को तभी माथे लगा रखा है |
इक तेरे आस पे दुनिया को भुला रखा है ||

साईं मुखड़े में सभी देवो को पाया मैंने |
जैसा चाहा तुझे, वैसा ही है पाया मैंने ||
हमने दीपक तेरे दरबार जला रखा है |
तेरे दरबार पे दामन यह फैला रखा है ||

कर दो कृपा मैं भी साईं तेरा दीवाना हूँ |
लेलो चरनी तेरी ज्योति का परवाना ||
कमल को किस लिए तूने गैर बना रखा है |
इक तेरे आस पे दुनिया को भुला रखा है ||
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