खून से सींचा जिसको मैंने,फूल के जैसे पाला है

बचपन में माँ अपने बच्चों को बोलना सिखाती है और बोलते हुए बच्चों को देख वो बोहोत खुश होती है,पर जब वह बच्चा बड़ा होता है तो माँ को सब के सामने चुप रहना सिखाता है...ये कैसा न्याय है?

खून से सींचा जिसको मैंने,फूल के जैसे पाला है,
आज उसी बेटे ने अपने घर से मुझको निकाला है ।

गर्मी लागि उसको तो मैंने हवा दी अपने आँचल से,
सर्द हवा का झोका आया, लगा लिया अपने दिल से ।
उस पर से मेरी नजर हटी ना, दिन और रात सम्भाला है,
खून से सींचा जिसको मैंने,फूल के जैसे पाला है ॥

वक़्त रहा हो जैसा भी पर उसको कमी ना आने दी,
उसकी इक मुस्कान के खातिर हर कुर्बानी मैंने दी ।
बेटे के सुख की चिंता में अपना गम भी भूला है,
खून से सींचा जिसको मैंने, फूल के जैसे पाला है ॥

आस थी जिस दिन बड़ा आदमी लाल मेरा बन जाएगा,
मुझे सहारा देगा मेरे दूध का कर्ज चुकाएगा ।
आज हूँ उसके घर की मैं दासी,सेठ वो पैसे वाला है,
खून से सींचा जिसको मैंने, फूल के जैसे पाला है ॥

सोनू कहता मत रो मईया, जिसने जैसा बोया है,
आज नहीं तो कल उसने भी वैसा ही फल पाया है ।
माँ के दिल को तोड़ के कोई सुखी ना रहने वाला है,
खून से सींचा जिसको मैंने, फूल के जैसे पाला है ॥
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