रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है

रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है,
वह बैठा खाटू धाम में फिर भी करीब है,
रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है,

हर रोज तेरी किरपा को महसूस कर रहा,
हर मुश्किलों से संवारा हस हस के लड़ रहा ,
तेरे भरोसे सँवारे तेरा ये जीव है,
वह बैठा खाटू धाम में फिर भी करीब है,
रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है,

इज्जत को मेरी सँवारे लूटने नहीं दियां
हारा कई दफा मगर गिरने नहीं दिया ,
मेरे कर्म पे सँवारे तू ही सरीख है ,
वह बैठा खाटू धाम में फिर भी करीब है,
रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है,

गुणगान तेरे कर सकू ऐसा हुनर दियां ,
शिवम् नहीं या लायक फिर भी वर दियां,
ओरो की बात क्या कहू मेरा नसीब है,
वह बैठा खाटू धाम में फिर भी करीब है,
रिश्ता हमारा श्याम से कितना अजीब है,
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