श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल किशोरी, कन्हैया तेरो कारो है।
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्यारो, श्री राधा जी को प्यारो है॥
श्री श्यामा किशोरी,
गोरे मुख पे तिल बनेओ, ताहि करूँ मैं प्रणाम।
मानो चन्द्र बिछाई के पौढ़े सालगराम॥
राधे तू बडभागिनी, कौन तपस्या कीन,
तीन लोक का रणतरण वो तेरे आधीन॥
कीर्ति सुता के पग पग में प्रयागराज,
केशव की केलकुंज कोटि कोटि काशी है।
यमुना में जगनाथ रेणुका में रामेश्वर,
थर थर पे पड़े रहें अयोध्या के वासी हैं।
गोपीन के द्वार द्वार हरिद्वार वसत यहाँ,
बद्री केदारनाथ फिरत दास दासी हैं।
सवर्ग अपवर्ग सुख लेकर हम करें कहाँ,
जानते नहीं हम वृन्दावन वासी हैं॥
योगी जन जान पाते है ना जिस का प्रभाव,
जिस की कला का पार शारदा न पाती है।
नारद आदि ब्रहम वादीओ ने भी न पाया तत्व,
दिव्य दिव्य शक्तियां भी नित्य गुण गातीं हैं।
शंकर समाधी में ढुंढते हैं जिसको,
श्रुतियां भी नेति नेति कह हार जातीं हैं।
वो नाना रूप धारी विष्णु मोहन मुरारी,
उस विष्व के मदारी को गोपियाँ नाचतीं हैं॥
श्याम तन श्याम मन श्याम ही हमारो धन,
आठों याम उधो हमें श्याम ही सो काम है।
श्याम हिये श्याम जीय श्याम बिनु नहीं पिय,
अंधे की सी लाकडी आधार श्याम नाम है।
श्याम गति श्याम मति श्याम ही है प्रानपति,
श्याम सुखधाम सो भलाई आठो याम है।
उधो तुम भये भोरे पाती ले के आये दोड़े,
योग कहाँ राखें यहाँ रोम रोम श्याम है॥
गवार से राजकुमार भये, जब भानु के द्वार लो आन लगें हैं।
बंसरी की उभरी है कला, जब किरिती किशोरी के गाने लगें हैं।
राधिका के संग फेरे पड़े, तब से कहना इतराने लगें हैं॥
हमरी राधा की कौन करे होड़,
सुनो रे प्यारे नन्द गईया।
राधा हमारी भोरी भारी,
यो तो छलिया माखन चोर।
देखो तेरे कनुआ की छतरी पुराणी,
वा की छतरी की कीमत करोड़।
चार टके की तेरी कारी कमरिया,
या की चुनरी की कीमत करोड़।
देखो तेरे कनुआ को मुकुट झुको है,
हमरी राधा के चरनन की और।
ब्रजमंडल के कण कण में बसी तेरी ठकुराई।
कालिंदी की लहर लहर ने, तेरी महिमा गाई॥
पुलकत हो तेरा यश गावे, श्री गोवर्धन गिरिराई।
ले ले नाम तेरो मुरली में नाचे कुवर कहनाई॥