चल हंसा उस देश समद जहां मोती रे

दोहा - कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन माही,
ऐसे घट घट राम है दुनिया खोजत नाही ।।

चल हंसा उस देश समद जहां मोती रे,
समद जहां मोती समद जहां मोती समद जहां मोती रे......

चल हंसा वो देश निराला,
बिन शशी बान रहे उजारा ।
जहां लगे ना काल की चोट, हो जग मग ज्योति रे,
चल हंसा उस देश.......

जब चलने की करी तैयारी,
माया जाल फस्या अति भारी।
करले सोच विचार घड़ी दो होती रे,
चल हंसा उस देश.......

चाल पढ्या जब दुविधा छुटी,
पिछली प्रीत कुटुंब से टूटी ।
हंसा भरी उड़ान हंसनी रोती रे,
चल हंसा उस देश......

जाय किया समद में बासा,
फेर नही आवाण की आशा ।
गावे भानीनाथ मौत सिर सोती रे,
चल हंसा उस देश......
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