अँध्यारे में भटक रहा था मेरा सारा जीवन,
जब से गुरु के चरणों में किया है मैंने सब अर्पण,
मेरी बदल गई काया गुरु दे तेरी माया,
बिन मंजिल का रही बन कर भटक रहा था जग में,
भरा हुआ था लालच और अहम् तन तन में,
ज्ञान के चकशू खोल कर दिखा दिया दर्पण,
जब से गुरु के चरणों में किया है मैंने सब अर्पण,
मेरे दाता जी तेरियां रचाइया खेड़ा सारियां,
मेरे सिर पर हाथ गुरु का अब मुझको क्या डर है,
कोई चिंता निकट ना आये गुरु देवका वर है,
रहती है भक्तो से इस लिए दूर सभी उल्जन,
जब से गुरु के चरणों में किया है मैंने सब अर्पण,
मेरे दाता जी तेरियां रचाइया खेड़ा सारियां,
शाम सवेरे गुरु नाम की माला फेरता हु अब,
गुरु की दृष्टि से ही सारी श्रिस्ति देखता हु अब,
मुझ जैसे पापी को भी कर डाला पावन,
जब से गुरु के चरणों में किया है मैंने सब अर्पण,
मेरे दाता जी तेरियां रचाइया खेड़ा सारियां,