आख्या भर आई री आख्या भर आई,
फागण की बारस बीती हो सी विदाई,
आख्या भर आई री आख्या भर आई,
फागन के मेले माहि घनो सुख पायो जी,
जावती वक़्त माहरो हिवड़ो भर आयो जी,
कइयां में सह फा वेला दासु जुदाई,
आख्या भर आई री आख्या भर आई,
देहि महारा जीवन धन हो था से क्या की शानी जी,
कालजे री कोर संवारा प्रीती है पुरानी जी,
एही सांचा बांकी दुनिया झूठी रिश्ते दारी,
आख्या भर आई री आख्या भर आई,
राजी राजी जा रे बेटा संवारा यु बोले.
हर्श तेरे मन की जाने क्या तू मुह खोले रे,
बेगो बेगो आठो रीजे दर्श सुनाई,
आख्या भर आई री आख्या भर आई,