मिटे से मिटती नहीं है कर्म की लकीर रे

सरवन जल झाड़ी लेकर भरने चला नीर रे,
चलते ही चलते पहुंचा सरयू के तीर रे......

अंधे दोनों मात पिता को कावड़ में बैठार के,
सब तीरथ करवा लाया हूं, कावड़ में बैठार के,
मिटे से मिटती नहीं है कर्म की लकीर रे,
चलते ही चलते पहुंचा सरयू के तीर रे.....

बोले दोनों मात पिता बेटा बड़ी जोर से प्यास लगी,
जल्दी से जाना सरवन लाना ठंडा नीर रे,
चलते ही चलते पूछा सरयू के तीर रे.....

अवधपुरी के राजा दशरथ खेलन चले शिकार रे,
मृग के धोखे में आकर कस के मारा तीर रे,
चलते ही चलते पहुंचा सरयू के तीर रे.....

अंधे दोनों मात पिता को पहले नीर पिलाना है,
फिर मेरे मरने का कारण सभी उनको बतलाना हैं,
रोए मरेंगे दोनों हो के अधीर रे,
चलते ही चलते पहुंचा सरयू के तीर रे......
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