किते मिल जावे पौणाहारी कला मैं फड़ लव पला,
रो रो सुनावा बीतिया,
लोकि मैनु कहन्दे दस ओथो की तू पा लिया,
इस संसार दे मेहनिया ने खा लिया,
ओहदे प्यार विच होया फिरा झला,
मैं फड़ लव पला रो रो सुनावा बीतिया,
किते मिल जावे पौणाहारी कला.......
चढ़या है रंग मैनु बाबा जी दे प्यार दा,
दिल मेरा हर वेले वाजा रहे मारदा,
ओहि राम तेरा ओहि मेरा अल्ल्हा,
मैं फड़ लव पल्ला रो रो सुनावा बीतिया,
किते मिल जावे पौणाहारी कला.......
बाबा जी दे बिना दुःख किसे न नहीं कहना मैं,
कर के दीदार ओहदे चरना च बहना मैं,
नाल योगी दे जैकारे दियां गला मैं फड़ लेना पल्ला,
रो रो सुनावा बीतिया,
किते मिल जावे पौणाहारी कला.......
जँगला दे विच जाके जोगी नु मैं लभ्या हूँ बाबा जी ने मैनु गुफा उते सदया,
सोहनी पटी वाला दर ओहदे चला मैं फड़ लेना पला,
रो रो सुनावा बीतिया,
किते मिल जावे पौणाहारी कला.......